पुस्ताकें आलोक पथ - ध्यान साधना - आपका साधना का परिश्रम क्या लाएगा
ज्ञान का दीपक जल गया तो कष्ट-क्लेश अपने आप दूर हो जायेगा, अँधेरा भाग जायेगा। अँधेरे सं लढाई मत मोल लो, केवल दीपक जलाओ।
जो झानी है वह अन्दर-बहार से सरल होगा। दोनों ओर से सरलता टपकेगी, कही भी कपट नही, कुटिलता नही। सीधी-सीधी भाषा और बच्चो जैसा निश्छल मन।
प्रकृति मे तीन गुण है - सत, रज और तम। जिस गुण की मात्रा शरीर और मन-मस्तिष्क में बढती है उसी के अनुसार व्यक्ति का व्यवहार दिखाई देने लगता है।
आपके स्वभाव में कुछ इस तरह कि ताजगी होनी चाहिये जैसे किसी पहाड़ी स्थान पर सुबह-सुबह खिले हुये फूलों पर पडी हुई ओस।
आपकी वाणी सत्य से प्रतिष्टित हो, प्रिय हो और हितकर हो। अपनी वाणी को ज्ञान के मधुर शब्दो से सजाओ।
मृत्यु इस जन्म कि आख़िरी नींद है। जन्म अगले जीवन का पहला जागरण है। पड़ाव पर थक कर सो जाना-बस, इसी का नाम मौत है। जागा तो नयी ताजगी से भर कर आगे चल दिया।
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1 comment:
माहराज जी की तस्वीर भी लगाते तो अच्छा रहता. सुझाव मात्र है.
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