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10/14/2007

आलोक पथ

जीस प्रकार आग मे दाहक शक्ति स्वभाविक है, उसी प्रकार भगवान के नाम मे पाप को जला डालने के शक्ति स्वभाविक है। भगवान का नाम किसी प्रकार भी जीभ पर आना चाहिये। इस कलियुग में भगवान का नाम बहुत बड़ा सहारा है। शास्त्रों में कहा गया है कि यह जीवन अनंत है। कर्मजाल से आबद्ध जीव दुसरा शरीर धारण कर लेता है। अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के कर्म जीव को पुनः जन्म लेने का कारण बनते है।उद्दानं तै पुरुषं नावयानम् - ऊपर उठने के लिये यह मानव जन्म प्राप्त हुआ है। ऋषि-मुनी, सिद्ध - साधकों ने समय - समय पर जीवन मूल्यों को सुनिश्चित करने के लिये अथक प्रयास किया। संत जिस स्थान पर रहतें है वह स्थान पावन हो जाता है । जिसके निकट रहने पर दैवी सम्पति के वृद्धि हो, बुराईयां मिटकर भगवान की ओर मन जाने लगे, वह हमारे लिये संत है। अपने को उसके हाथ में सौप देना चाहिये।
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