ध्यान क्या देता है.....
ध्यान मृत्यु जैसे है। जैसे म्रृत्यु हमारे पुराने शरीर को समाप्त करके हमें नया शरीर प्रदान करती है, ऐसे ही ध्यान के द्वारा हम जैसे है वैसे नहीं रहते। बल्कि हम वह हो जाते है जैसे हमें होना चाहिय। हम सबके भीतर जो अतीत की यादें हैं, ध्यान उन सबको विदा कर देता है और हमारे भविष्य को हमारे समक्ष प्रकट कर्ता है। ध्यान हमें संसार की पकड़ से बाहर ले जाता है और परमात्मा की सीमा में प्रवेश करा देता है।
ध्यान है द्वार मोक्ष का। ध्यान से ही वह सुख प्राप्त किया जा सकता है जिसके पाने के बाद दूसरे सुख तुच्छ लगाने लगते है। ध्यान से ही तो पता चलता है कि में शरीर नहीं हूँ। फिर साधक की स्वयं को खोजने की यात्रा शुरू होती है कि में कौन हूँ? कहाँ से आया हूँ? अन्तत: कहाँ चला जाऊंगा? इन प्रश्नों के उत्तर खोजते खोजते एक क्षण ऐसा आता है जब खोजने वाला मिट जाता है। बस वही क्षण है, जब सबकुछ पा लिया जाता है। साधक महाशुन्य में विलीन हो जाता है।
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