ध्यान क्या देता है.....
ध्यान मृत्यु जैसे है। जैसे म्रृत्यु हमारे पुराने शरीर को समाप्त करके हमें नया शरीर प्रदान करती है, ऐसे ही ध्यान के द्वारा हम जैसे है वैसे नहीं रहते। बल्कि हम वह हो जाते है जैसे हमें होना चाहिय। हम सबके भीतर जो अतीत की यादें हैं, ध्यान उन सबको विदा कर देता है और हमारे भविष्य को हमारे समक्ष प्रकट कर्ता है। ध्यान हमें संसार की पकड़ से बाहर ले जाता है और परमात्मा की सीमा में प्रवेश करा देता है।
ध्यान है द्वार मोक्ष का। ध्यान से ही वह सुख प्राप्त किया जा सकता है जिसके पाने के बाद दूसरे सुख तुच्छ लगाने लगते है। ध्यान से ही तो पता चलता है कि में शरीर नहीं हूँ। फिर साधक की स्वयं को खोजने की यात्रा शुरू होती है कि में कौन हूँ? कहाँ से आया हूँ? अन्तत: कहाँ चला जाऊंगा? इन प्रश्नों के उत्तर खोजते खोजते एक क्षण ऐसा आता है जब खोजने वाला मिट जाता है। बस वही क्षण है, जब सबकुछ पा लिया जाता है। साधक महाशुन्य में विलीन हो जाता है।
9/30/2007
9/24/2007
ध्यान की मुख्य बातें
स्थूल शरीर; इस में पाँच ज्ञानेंद्र्या और पांच कर्मेन्द्रियाँ हैं।
ज्ञानेंद्र्या ये है।
आंख ,नाक ,कान ,त्वचा, तथा जीभ जो चखाती है !
और कर्मेंद्रियाँ ये है।
हाथ ,पाँव , मुत्रेंद्रिय ,गुदा ,तथा जीभ जो बोलती है !
इन इन्द्रियों का स्वामी मन है। मन में ही विचारों का आदान प्रदान होता है। इन विचारों का निर्णय या स्वीकृति बुद्धि देती है। जहाँ हमारे कर्म अंकित होते हैं उसको चित्त कहते हैं।
ज्ञानेंद्र्या ये है।
आंख ,नाक ,कान ,त्वचा, तथा जीभ जो चखाती है !
और कर्मेंद्रियाँ ये है।
हाथ ,पाँव , मुत्रेंद्रिय ,गुदा ,तथा जीभ जो बोलती है !
इन इन्द्रियों का स्वामी मन है। मन में ही विचारों का आदान प्रदान होता है। इन विचारों का निर्णय या स्वीकृति बुद्धि देती है। जहाँ हमारे कर्म अंकित होते हैं उसको चित्त कहते हैं।
9/23/2007
हे ब्रम्हज्ञान के प्रकाशपूंज
हे ब्रम्हज्ञान के प्रकाशपूंज
हे सतगुरु देवा! हे ब्रम्हज्ञान के प्रकाशपूंज! हे सुजनात्मक शक्ति के स्वामी! हम सभी भक्तों का श्रध्दा भरा प्रणाम स्वीकार हो।
हे त्रिगुनातित! आप दयालु हो, परम कृपालु हो। धर्म के संवाहक हो, ॠषि मुनियों के परम्परा के सजीव उदाहरण हो, काल कालंतरों के
हे सतगुरु देवा! हे ब्रम्हज्ञान के प्रकाशपूंज! हे सुजनात्मक शक्ति के स्वामी! हम सभी भक्तों का श्रध्दा भरा प्रणाम स्वीकार हो।
हे त्रिगुनातित! आप दयालु हो, परम कृपालु हो। धर्म के संवाहक हो, ॠषि मुनियों के परम्परा के सजीव उदाहरण हो, काल कालंतरों के
9/12/2007
परम पूज्य सुधान्शुजी महाराज
ध्यान : शुन्य में विराट की अनुभूति
ध्यान : शुन्य में विराट की अनुभूति
सभुति की एक प्रसिध्द कथा है। वह वृक्ष के टेल शुन्य अवस्था में बैठा उया था। अकस्मात् उसने चकित होकर देखा कि चारों तरफ आकाश से उसके ऊपर फूल बरस रह थे। देवताओं ने प्रकट होकर कहा कि 'चकित मत होओ। तुमने आज हमें शून्यता पर सबसे बड़ा प्रवचन दिया है। हम सब उसी का उस्तव मन रहे है और तुम्हारे सम्मान में तुम्हारे ऊपर फूल बरसा रहे है।' सभुति ने कहा कि मगर मै तो कुछ बोला ही नही। देवताओं ने उत्तर दिया कि ' हाँ ! यह सत्य है कि न तुमने कुछ बोला और न हमने कुछ सुना - यही तो है शून्यता पर दिया गया सबसे बड़ा प्रवचन ................ । '
विश्व मंगल दिवस ..... २००५
सभुति की एक प्रसिध्द कथा है। वह वृक्ष के टेल शुन्य अवस्था में बैठा उया था। अकस्मात् उसने चकित होकर देखा कि चारों तरफ आकाश से उसके ऊपर फूल बरस रह थे। देवताओं ने प्रकट होकर कहा कि 'चकित मत होओ। तुमने आज हमें शून्यता पर सबसे बड़ा प्रवचन दिया है। हम सब उसी का उस्तव मन रहे है और तुम्हारे सम्मान में तुम्हारे ऊपर फूल बरसा रहे है।' सभुति ने कहा कि मगर मै तो कुछ बोला ही नही। देवताओं ने उत्तर दिया कि ' हाँ ! यह सत्य है कि न तुमने कुछ बोला और न हमने कुछ सुना - यही तो है शून्यता पर दिया गया सबसे बड़ा प्रवचन ................ । '
विश्व मंगल दिवस ..... २००५
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