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7/05/2016

आप अपने हाथो

आप अपने हाथो से इतनी हिंसा नहीं करते जितनी वाणी से करते हें व्यंग्यात्मक भाषा में बोलना भी अपने आप में एक बहुत बडी हिंसा का ही कार्यहें। बाण का घाव भर जाता हें पर वाणी का घाव कभी नहीं भरता। 

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